रिपब्लिकन ब्यूरो
हाजीपुर। सोचिये जरा 15 अगस्त को देश का क्या माहौल होता है? जिस चाचा ने बच्चों को देश का भविष्य बताया उन बच्चों के जेहन में दरअसल इस दिन की तस्वीर क्या बनती होगी? और क्या यह भी समझ लेना चाहिए कि विद्यालय जिस धंधा के नशे में आज अंधा हो चला उसमें राष्ट्रभक्ति की गूंज को महसूस करना भी मुश्किल है और आने वाले दिनों में और मुश्किल होता रहेगा? अगर ये तमाम स्थिति एक विद्यालय में बनती है तो इस विद्यालय पर चर्चा का रूप और स्वरूप क्या होगा? सोशल मीडिया का जमाना है. प्रतिक्रिया का दायरा संभालना भी मुश्किल होगा। विचार बेलगाम होगा क्योंकि राष्ट्रभक्ति को देश के ही विद्यालय द्वारा चुनौती है. चुनौती देश के शिक्षा के मंदिर में देश के समक्ष संस्कार की है. स्थिति नाजुक इसलिए भी है क्योंकि वैशाली जिला के युवा कांग्रेस के उपाध्यक्ष को लिखना पड़ा ‘पापा अब से 15 अगस्त और 26 जनवरी को स्कूल नही जायेंगे’ जरा सोचिये यह स्थिति कैसे और क्यों आई होगी? रिपब्लिकन न्यूज़ इस पूरे लेख को आपके समक्ष पेश करेगा मगर इस वक्त जरा बचपन के दिनों को टटोलिये जब आप कक्षा में हुआ करते थे निबंध प्रतियोगिता के नाम पर 15 अगस्त पर आपके देश के लिए जोश के रंग, राष्टभक्ति की भावना को आपके दिलों दिमाग में भरने की कोशिश की जाती थी. देश प्रेम को जाहिर करने के लिए आपके शब्द जब गर्व से तैयार होता था कहने को कि ‘जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है, वह नर नहीं, नर पशु निरा है और मृतक समान है।’
जिस व्यक्ति में देश-प्रेम की भावना का अभाव है और जो अपने देश व अपनी जाति की उन्नति करना अपना धर्म नहीं समझता, उस मनुष्य का जीवन व्यर्थ है। जिस देश में हम पैदा हुए हैं, जिसकी धूल में लोट-लोटकर हम बड़े हुए हैं, जिसका अन्न खाकर हम पले हैं, उसके प्रति हमारा प्रेम होना स्वाभाविक है।
मातृभूमि तो माता के समान है। जिस प्रकार माता से हमारा अटूट प्रेम होता है उसी प्रकार अपने देश के प्रति हमारा प्रेम अटल होता है। इसीलिए वेद में कहा गया है- ‘नमो मातृ भूम्यै, नमो मातृ भूम्यै।’ सचमुच माता और जन्मभूमि स्वर्ग से बढ़कर होती हैं। पुरुषोत्तम श्रीरामचंद्रजी ने भी कहा है, ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।’ मनुष्य ही नहीं वरन् चर-अचर, पशु-पक्षी सभी अपनी मातृभूमि से प्यार करते हैं। योगेश्वर श्रीकृष्ण ने इसी भावना से अविभूत होकर कहा है, ‘ऊधौ मोहि ब्रज बिसरत नाहिं।’ जिस समय हम अपनी मातृभूमि छोड्कर किसी को जाते हुए देखते हैं या स्वयं जा रहे होते हैं, उस समय हमारा दिल रो उठता है। मैथिलीशरण गुप्त ने ठीक ही कहा है, ‘जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं। वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं’
देश-प्रेम की भावना से पूर्ण व्यक्ति ही देश की उन्नति में सहायक होते हैं। देश की मान-मर्यादा की रक्षा के लिए वे अपना सर्वस्व बलिदान करने को तत्पर रहते हैं । किसी विद्वान् का कथन है, ‘जो व्यक्ति देश की सभी संस्थाओं से स्वाभाविक प्रेम करता है, देश के रीति-रिवाजों से प्रेम करता है; देश में उत्पन्न हुई सभी वस्तुओं से स्नेह दिखाता है; देश की वेशभूषा को अपनाता और देश की भाषा की उन्नति करता है, वस्तुत: वही सच्चा देशभक्त है।’
जो व्यक्ति देश की रक्षा और स्वतंत्रता के लिए तथा देश में प्रचलित कुरीतियों को दूर करने के लिए अपना बलिदान दे सकता है; जो व्यक्ति बाल-विवाह, अंधविश्वास, छुआछूत, स्वार्थ-सिद्धि और भाई-भतीजावाद को दूर करने का प्रयत्न करता है तथा विधवा-विवाह और स्त्री-शिक्षा को समाज का आधार मानता है, वह सच्चा देशभक्त है।
देश-प्रेम ही देश की उन्नति का परम साधन है। जो मनुष्य अपना तन, मन, धन देश पर निछावर कर देता है, वही सच्चा देश-प्रेमी है । भामाशाह का नाम ऐसे देशभक्तों में सर्वोपरि है। उन्होंने चित्तौड़ की स्वतंत्रता के लिए महाराणा प्रताप को अपनी समस्त संपत्ति अर्पित कर दी थी।
राष्ट्र के संकट के समय जो व्यक्ति चोर-बाजारी, रिश्वतखोरी या अन्य अनुचित साधनों द्वारा धन कमाते हैं, वे देशद्रोही हैं। ऐसे लोगों को कठोर सजा मिलनी चाहिए। हृष्ट-पुष्ट व्यक्ति अपने शारीरिक श्रम द्वारा और विद्वान् तथा साहित्यिक अपनी रचनाओं द्वारा राष्ट्रोत्थान में सहायता कर सकते हैं।
राष्ट भक्ति की जब बातें होती हैं फिर बहुत मुश्किल होता है शब्दों पर विराम लगाना लेकिन फिर भी उम्मीद होगी कि इन शब्दों से जिस देश प्रेम का जिक्र किया जा रहा है आप बेहतर समझ सकें। आगे बढ़ते हैं और जरा पढ़ते हैं कि सतेंद्र यादव ने क्या लिखा है और किस तरह हाजीपुर के सेंट पॉल विद्यालय पर अपने फेसबुक पोस्ट के माध्यम से बड़ा खुलासा किये है।
अपने लेख में उन्होंने लिखा, ‘लोकतंत्र का चौथा स्तंभ मीडिया जब प्रमाण देने के बाद भी लोगों तक सच पहुंचाना और दिखाना बंद कर दें ऐसे में मजबूर होकर आप तक इस सच्चाई को पहुँचा रहा हूँ ताकि आप समझ सकें कि किस व्यवस्था में हमारे बच्चें आगे बढ़ रहे हैं और कैसे आपके नौनिहालों का मानसिक शोषण किया जा रहा हैं। वाक्या विगत दिनों 15 अगस्त को देश के 72वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर हाजीपुर में शिक्षा के मामले में सबसे प्रतिष्ठित और अव्वल दर्जे के विद्यालय ‘संत पॉल्स एकेडमी’ से जुड़ा है। स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर एकेडमी कैम्पस में बच्चों एवं अभिभावकों के साथ जिस प्रकार से सलूक किया गया वो बेहद निंदनीय एवं स्कूल मैनेजमेंट के लापरवाह रवैये को दर्शाता है।
नाराज अभिभावक ने सेंट पॉल विद्यालय में कुछ इस तरह निकाला गुस्सा
सोचिये जरा 15 अगस्त को देश का क्या माहौल होता है? जिस चाचा ने बच्चों को देश का भविष्य बताया उन बच्चों के जेहन में दरअसल इस दिन की तस्वीर क्या बनती होगी? और क्या यह भी समझ लेना चाहिए कि विद्यालय जिस धंधा के नशे में आज अंधा हो चला उसमें राष्ट्रभक्ति की गूंज को महसूस करना भी मुश्किल है और आने वाले दिनों में और मुश्किल होता रहेगा? अगर ये तमाम स्थिति एक विद्यालय में बनती है तो इस विद्यालय पर चर्चा का रूप और स्वरूप क्या होगा?
Posted by Republican News on Monday, August 20, 2018
अच्छी शिक्षा के लिए जिले के इस बेहद प्रचलित स्कूल में अभिभावक अपने मेहनत के पाई-पाई इकठ्ठा कर के नामांकन कराते हैं और हर महीने मोटी फी स्कूल को देते हैं ताकि उनके बच्चें को आज के समयानुसार उन्नत और अच्छी शिक्षा के साथ-साथ अच्छे संस्कार मिले। मगर हमारी आपकी सोच को संत पॉल्स एकेडमी द्वारा कैम्पस में किस प्रकार रौंदा गया वो साक्षात देखने, कैम्पस में अभिभावकों के तीखे अनुभव को सुनने एवं घर पहुंच कर मायूसी भरे शब्दों में बच्चों द्वारा कही गयी बातों के आधार पर नीचे लिख रहा हूँ।
1) कैम्पस में झंडा तोलण कब और किसने किया? बच्चों ने बताया कि उन्हें नही मालूम कि स्कूल में किसने झंडा फहराया। हो सकता हैं राष्ट्र गान में जो बच्चें चयनित हुए हो उन्ही बच्चों को कैम्पस में झंडा तोलण के वक़्त सामने खड़ा किया गया हो? हालांकि इसमें भी उन्हें संशय है? क्या झंडा तोलण के वक़्त एकेडमी के बच्चों को वहाँ नही होना चाहिये था? देश के किसी भी राज्य के किसी भी छोटे से छोटे निजी स्कूलों में भी ऐसा नही किया जाता। फिर राष्ट्रीय झंडा फहराते वक़्त स्कूल प्रबंधक द्वारा बच्चों को दूर रखना राष्ट्रीय झंडे का अपमान करना नही माना जाये? कैसे सीखेंगे बच्चें कि झंडा तोलण क्या हैं? झंडे को सलामी कैसे दिया जाता है? झंडे को सलामी देने के पीछे क्या भावना छुपी होती है? झंडे के नीचे खड़े होकर झंडा गीत गाने में क्या अनुभूति महसूस होती है? झंडा तोलण के बाद बच्चों को झंडे और आज़ादी के बारे में संबोधन से बच्चों को सीखने और महसूस होने से क्यों वंचित किया गया?
2) राष्ट्रीय प्रसाद जलेबी की जगह बिस्कुट बाँटना- बच्चों ने कहाँ कि 15 अगस्त पर जलेबी की जगह बिस्किट देखकर लग रहा है कि वाकई बहुत अनोखा स्कूल है यह। बचपन से आज तक मैंने भी ऐसे राष्ट्रीय पर्व के अवसर पर ‘जलेबी’ को प्रसाद के रूप में पाता आया हूँ। हालाँकि मॉडर्न समय मे कई जगहों पर जलेबी के साथ साथ अन्य प्रकार के मिठाई और नमकीन का भी प्रचलन देखा जाने लगा हैं मगर बिना जलेबी के नहीं । यहाँ बच्चों एवं उनके अभिभावकों को स्कूल से निकलते समय जलेबी की जगह बिस्किट के पैकेट दिए जा रहे थे। क्या आपके आस पास के छोटे से छोटे स्कूल में भी जलेबी की जगह बिस्किट को राष्ट्रीय प्रसाद के रूप में वितरण किया जाता है? विद्यालय प्रबंधक यहाँ भी फेल।
3) कड़ी धूप में खुले आसमान के नीचे नन्हे मुन्ने बच्चों का कार्यक्रम के आयोजन के साथ अभिभावकों व् अथितियों को बैठाने की व्यवस्था: सुबह 9:30 बजे कड़ी धूप में कार्यक्रम शुरू हुआ जो अभिभावकों के विरोध के कारण दिन के 12:30 बजे बंद करना पड़ा। कड़ी धूप के कारण कार्यक्रम में भाग ले रहे 2 बच्चें नीचे गिर पड़े। स्कूल के मेंटर राधा कुमार, प्रिंसिपल रिपुदीप भाटिया समेत स्कूल प्रबंधक जहाँ कैम्पस के बिल्डिंग के नीचे छावँ में पँखे और कूलर के बीच धूप में बच्चों के कार्यक्रम पर तालियाँ बजाने में व्यस्त थे वही उनके आंखों के सामने बच्चों के अभिभावक चिलचिलाती धूप में कैम्पस के दीवार से सट कर छाये की तलाश करते फिरते, रुमाल को सर पर ढककर या किस्मत वाले अभिभावक अपने द्वारा लाये छाते के नीचे खड़े होकर अपने बच्चों के परफ़ॉर्मेन्स को देख दिखे। मगर स्कूल प्रबंधक को इस बात से कोई मतलब नही दिखा। अभिभावक धूप में खड़े रहे और बच्चें विद्यालय प्रबंधन के सामने धूप में परफॉर्म करते रहे। अंत मे अभिभावकों का धैर्य समाप्त हो गया और कार्यक्रम को बंद कर बच्चों को स्कूल से छुट्टी करने की माँग की जाने लगी। मगर उल्टे अपनी कमियों को स्वीकारने की बजाय स्कूल प्रबंधक द्वारा अभिभावकों पर ही स्कूल की शांति व्यवस्था को भंग करने व् बच्चों के मनोबल गिराने का आरोप लगाया जाने लगा। क्या स्कूल प्रबंधन को मौसम की जानकारी नही थी?
4) अभिभावकों एवं स्कूल प्रबंधन के संयुक्त मीटिंग: सीबीएसई एवं आईसीएसीई बोर्ड द्वारा संचालित हो रहे संत पॉल्स ग्रुप स्कूल की वैशाली जिले में स्ट्रॉबेरी किड्स, नींव, संत पॉल्स प्राइमरी स्कूल, हाई स्कूल, संत पॉल्स एकेडमी जैसे अन्य कई ब्रांच हैं मगर किसी भी कैंपस में स्कूल प्रबंधन कभी भी अभिभावकों के साथ किसी भी मुद्दे पर कोई मीटिंग नही करती। स्कूल प्रसाशन इकट्ठे अभिभावकों के सवाल से बचने के लिए ऐसे कदम उठाते रही है। इस घटना के बाद अभिभावकों ने स्कूल प्रबंधन से बैठक बुलाने की माँग रखी है मगर अभी तक स्कूल प्रबंधन की इस बात पर मौन साधे हुए है।